Ahoi Ashtami Vrat Katha: अहोई माता की यह व्रत कथा
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत माता अहोई या देवी अहोई को समर्पित है। इस व्रत को कृष्णाष्टमी नाम से भी जाना जाता है। साथ ही अरुणोदय से पहले मथुरा के राधाकुंड में स्नान कर कुष्मांडा देवी की पूजा भी की जाती है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की खुशहाली और लंबी उम्र के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं और सुबह से शाम तक (गोधूलि बेला तक) व्रत रखती हैं। इसके बाद तारों को देखकर व्रत खोलती हैं। कुछ लोग चंद्रमा को देखकर भी व्रत खोलती हैं। इस दिन को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि अहोई अष्टमी का व्रत अष्टमी तिथि के दौरान किया जाता है जो चंद्र माह का आठवां दिन है। जिन महिलाओं को गर्भधारण करने में दिक्कत होती है, उनका अक्सर गर्भपात हो जाता है या उनको बेटा नहीं होता है वे भी अहोई अष्टमी के दिन पूजा करती हैं।
अहोई अष्टमी पूजा की तैयारियां
1. संकल्पः अहोई अष्टमी के दिन महिलाओं को सुबह स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प के दौरान यह भी कहा जाता है कि व्रती बिना कुछ खाए या बिना पानी के रहेंगे और अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुसार तारे या चंद्रमा को देखने के बाद व्रत तोड़ेंगे।
2. शाम को पूजा से पहले तैयारियां कर लें। इसके लिए महिलाएं दीवार पर देवी अहोई का चित्र बनाएं। पूजा के लिए उपयोग की जाने वाली अहोई माता की तस्वीर में आठ कोने होने चाहिए। साथ ही तस्वीर में देवी अहोई के साथ-साथ सेई (सेई यानी हाथी और उसके बच्चे) भी देवी के पास ही बनाना चाहिए। मान्यता है कि सेई एक कांटेदार स्तनपायी है। यदि दीवार पर चित्र बनाना संभव न हो तो अहोई अष्टमी पूजा का बड़ा वॉलपेपर भी प्रयोग कर सकते हैं। इस तस्वीर में सात बेटों और बहुओं को भी दर्शाया जाना चाहिए।
3. इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें और अल्पना बनाएं। पूजा स्थल पर लकड़ी की चौकी पर गेहूं बिछाकर एक जल से भरा कलश रखें और कलश का मुंह मिट्टी के ढक्कन में जल भरकर (करवा से) ढंक दें। इसे भी ढक्कन से ढंक दें।
4. करवा की नोजल को सरई सींक से बंद कर दें। पूजा के दौरान अहोई माता और सेई को सरई सींक की सात कोपलें भी चढ़ाई जाती हैं। यदि सरई न मिले तो कपास की कलियों का उपयोग किया जा सकता है।
5. इसके अलावा शाम को पूजा से पहले ही चढ़ाने के लिए 8 पूड़ी, 8 पुआ और हलवा तैयार कर लें। यह खाद्य सामग्री बाद में दक्षिणा के साथ परिवार की किसी बुजुर्ग महिला या ब्राह्मण को दिया जाता है।
अहोई माता की पूजा विधि
1. आमतौर पर महिलाएं परिवार की अन्य महिला सदस्यों के साथ अहोई अष्टमी पूजा करती हैं। पूजा के दौरान महिलाएं अहोई माता की कहानी सुनाती हैं।
2. धूप, दीप अर्पित करें और फल-फूल चढ़ाएं। अक्षत रोली और दूध अर्पित करें।
3. कुछ समुदाय के लोग चांदी की अहोई बनवाते हैं, जिसे स्याऊ कहते हैं और इसकी पूजा कर बाद में दो मोतियों के साथ धागे की मदद से गले में पेंडेंट के रूप में पहनते हैं।
4. अहोई माता के साथ सेई की का ध्यान कर माता और सेई को हलवे के साथ सात घास का भोग अर्पित करें।
5. पूजा के अंत में माता अहोई की आरती की जाती है।
6. फिर तारों या चंद्रमा को करवा या कलश से अर्घ्य दिया जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
अहोई अष्टमी की कथा के अनुसार, घने जंगल के पास स्थित एक गांव में एक दयालु महिला रहती थी। उसके सात बेटे थे. कार्तिक महीने में दिवाली उत्सव से कुछ दिन पहले महिला ने अपने घर की मरम्मत करने और उसे सजाने का फैसला किया। इसके लिए उसने कुछ मिट्टी लाने के लिए जंगल में जाने का फैसला किया। जंगल में मिट्टी खोदते समय, जिस कुदाल से वह मिट्टी खोद रही थी, उससे गलती से एक शेर के बच्चे की मौत हो गई। मासूम शावक के साथ जो हुआ उसके लिए वह दुखी थी।
इस घटना के एक साल के अंदर ही महिला के सातों बेटे एक-एक कर गायब हो गए। ग्रामीणों ने उन्हें तलाशा लेकिन न मिलने पर मृत मान लिया। ग्रामीणों का अनुमान था कि उसके बेटों को जंगल के किसी जंगली जानवर ने मार डाला होगा। इससे महिला उदास रहने लगी और उसने इस दुर्भाग्य के लिए उससे हुई शावक की मौत को जिम्मेदार माना। इस बीच एक दिन उसने गांव की वृद्ध महिला को अपनी पीड़ा सुनाई और शावक को मारने की घटना भी बताई। इस पर बुढ़िया ने महिला को सलाह दी कि अपने पाप के प्रायश्चित के रूप में, उसे शावक का चेहरा बनाकर देवी अहोई भगवती, जो कि देवी पार्वती का अवतार हैं की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि वह सभी जीवित प्राणियों की संतानों की रक्षक हैं।
महिला ने अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करने का निश्चय किया. जब अष्टमी का दिन आया तो महिला ने शावक का चेहरा बनाकर व्रत रखा और अहोई माता की पूजा की। उसने जो पाप किया था उसके लिए उसने ईमानदारी से पश्चाताप किया। देवी अहोई उसकी भक्ति और ईमानदारी से प्रसन्न हुईं और उसके सामने प्रकट हुईं और उसे उसके पुत्रों की लंबी उम्र का वरदान दिया। जल्द ही उसके सातों बेटे जीवित घर लौट आए। उस दिन के बाद से हर वर्ष कार्तिक कृष्ण अष्टमी के दिन माता अहोई भगवती की पूजा करने का विधान बन गया। इस दिन माताएं अपने बच्चों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं और व्रत रखती हैं।